घर से निकली तो थी, मै दोस्तों कि तलाश में , पर इस तलाश में, मैने बस एक साये को ही पाया है ... एक साया जो दीखता तो, कही न कही है, मुझ सा ही , पर न जाने क्यों, मुझ से ही है अनजान सा कही ... एक साया जो हर पल, है तो मेरे साथ ही , पर न जाने क्यों मुझ से ही है रूठा सा कही ... और मेरा ये मन आज भी, इसी असमंजस में पड़ा है कि, ये जो साया है, जो है तो मेरा ही, जो समाया भी है, मुझ में ही कही न कही , क्या मुझसे,ये रूबरू है भी, या नहीं ...