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Showing posts from April, 2013

गर्मियों की छुट्टियाँ

दो महीने की लम्बी छुट्टियाँ , दादी और नानी के घर पर बिताती ... रात को दादी की राजा- रानी की कहानियों में , खुद को  राजकुमारी मान कर ,  अपने ही सपनों में खो कर, सो  जाती ...    सुबह उठ कर, नानी के संग पूजा की थाली , फूलों से  सजाती और  उन के भजनों, के दो-चार शब्द  जो समझ आते, उन के साथ गुन-गुना कर बड़ी  खुश  हो जती ...  दादा के संग बजार घुमने जाती, और पड़ोस के चाचा की दुकान  पर   बैठे, लोगो को,  राम- राम साहब कह के,  उन से चार  टॉफ़ी पा कर , अपनी फ्हराक की छोटी-छोटी जेबॆए भर  लाती  ... दोपहर को नाना के संग ताश खेलती,  और कागज के गुलाम- बादशाहों  की  अनोखी दुनिया में खो कर, नाना की गोदी के तकिये पर,  सर रख कर सो जाती ... शाम को चाचा- चाची और मामा-मामी,  वाले दीदी-भईया के संग  लुक्का-छुप्पी  खेलती, और सब को भाग- भाग कर पकड़ लेती ... आज भी खेल तो वही  लुक्का-छुप्पी   का  चल रहा है, पर गर्मियों की वो   छुट्टियाँ , खुद ही जाने  कहाँ  जा कर छुप गई  हैं  ... कि मेरे खूब खोजने