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Showing posts from November, 2013

जंजीर

बाबुल मोहे राजा घर ना दीजो , मोहे राज- पाढ़ ना भाये... बाबुल मोहे ज़मींदार घर भी ना दीजो , मोहे धन- धान्य ना भाये ... बाबुल मोहे सुनार घर भी  ना दीजो,  मोहे जेवर- जवाहरात ना भाये ... बाबुल मोहे लोहार घर ही दीजो,  जो मोरी जंजीर पिघलाए ... मन के पिजरे में लगे, मोरे ताले  तुडाये … पिंजरे से निकल उड़ चलु, मै भी उस नील गगन की ओर , सुना बहुत है बारे में जिस के, पर जंजीर तले देख जिसे ना पाई कभी ...    बाबुल मोहे लोहार घर ही दीजो,  जो मोरी जंजीर पिघलाए… मोरी जंजीर पिघलाए...  ...