बाबुल मोहे राजा घर ना दीजो , मोहे राज- पाढ़ ना भाये... बाबुल मोहे ज़मींदार घर भी ना दीजो , मोहे धन- धान्य ना भाये ... बाबुल मोहे सुनार घर भी ना दीजो, मोहे जेवर- जवाहरात ना भाये ... बाबुल मोहे लोहार घर ही दीजो, जो मोरी जंजीर पिघलाए ... मन के पिजरे में लगे, मोरे ताले तुडाये … पिंजरे से निकल उड़ चलु, मै भी उस नील गगन की ओर , सुना बहुत है बारे में जिस के, पर जंजीर तले देख जिसे ना पाई कभी ... बाबुल मोहे लोहार घर ही दीजो, जो मोरी जंजीर पिघलाए… मोरी जंजीर पिघलाए... ...