दो महीने की लम्बी छुट्टियाँ , दादी और नानी के घर पर बिताती ... रात को दादी की राजा- रानी की कहानियों में , खुद को राजकुमारी मान कर , अपने ही सपनों में खो कर, सो जाती ... सुबह उठ कर, नानी के संग पूजा की थाली , फूलों से सजाती और उन के भजनों, के दो-चार शब्द जो समझ आते, उन के साथ गुन-गुना कर बड़ी खुश हो जती ... दादा के संग बजार घुमने जाती, और पड़ोस के चाचा की दुकान पर बैठे, लोगो को, राम- राम साहब कह के, उन से चार टॉफ़ी पा कर , अपनी फ्हराक की छोटी-छोटी जेबॆए भर लाती ... दोपहर को नाना के संग ताश खेलती, और कागज के गुलाम- बादशाहों की अनोखी दुनिया में खो कर, नाना की गोदी के तकिये पर, सर रख कर सो जाती ... शाम को चाचा- चाची और मामा-मामी, वाले दीदी-भईया के संग लुक्का-छुप्पी खेलती, और सब को भाग- भाग कर पकड़ लेती ... आज भ...