ना जाने क्यों बातों में , अब वो बात नहीं रही … वक़्त के बदलाव में, जाने कब लोग भी बदल गए , इस बात की भनक भी ना लग पाई , और बातों की रेलगाड़ी , यादों के स्टेशन तक जा पहुँची .... और अब जब दिल ने मचल कर , इस रेलगाड़ी की रफ़्तार थामने को, इसकी चैन जो खींची है , तो ना जाने क्यों बातों में , अब वो बात ही नहीं रही …