आज सुबह जब
घर से मै
निकली ,
तो रास्ते में कई
बार मुझे वो
मिली …
कभी मेरे घर
के सामने वाली
झोपड़ी में ,
जानलेवा बीमारी से झुझती
देह में
…
तो कभी मेरे
दफ्तर के बाहर,
घंटों मज़दूरी करती चंद
थकी उम्मीदों में
....
कभी सड़कों के सिग्नलों
पर भीख मांगती
,
भूखी - सहमी उन
आँखों में …
तो कभी रेलवे
स्टेशनों के प्लेटफार्म
पर ,
सर्दी में ठिठुरती
हुई कई मज़बूरियों
में ....
कभी बज़ार की
चाय की दुकान
पर ,
काम करने वाले
छोटू के सूने
भविष्य में ....
तो कभी बाजू
में टेलर की
दुकान पर ,
काम करते सलीम
चच्चा के बूढ़े
कांपते हाथों में …
कभी मेरे गाँव
के किसान की
आत्महत्या का ,
मातम मानती
उसके परिवार की
आँसू भरी आँखों
में ....
तो कभी बाल
विवाह की जज़ीरों
में फ़सी ,
मेरे उसी गाँव
की बालिका वधु
के बिखरे हुए
अरमानो में
....
पूँछने पर अपना
नाम तो उसने
मुझे आज़ादी बताया,
पर ना जाने
क्यों पिंजरे में
वो मुझे
कैद मिली ....
Very well captured. 'Freedom' is just a word for the poor.
ReplyDeleteThank you vikas
DeletePel diya ...keep it up...
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