ज़िद्द का जो तुम्हारी
आँखों से पर्दा हटता,
तो तुम समझ पाते
मै क्या सोचती हुँ …
अभिमान का जो शोर तुम्हारे
कानो में कम होता ,
तो तुम सुन पाते
मेरे सन्नाटे को भी …
दिल के जो दरवाजे खुले रखते ,
तो तुम को छू पाते मेरे भी जज़्बात कहीं ....
संकोच की जो बैसाखी तोड पाते ,
तो मेरे ख़्वाबों की दौड़ में ,
तुम भी दे पाते साथ मेरा ....
ज़िद्द का जो तुम्हारी
आँखों से पर्दा हटता ,
तो तुम समझ पाते
मै क्या सोचती हुँ ....
आँखों से पर्दा हटता,
तो तुम समझ पाते
मै क्या सोचती हुँ …
अभिमान का जो शोर तुम्हारे
कानो में कम होता ,
तो तुम सुन पाते
मेरे सन्नाटे को भी …
दिल के जो दरवाजे खुले रखते ,
तो तुम को छू पाते मेरे भी जज़्बात कहीं ....
संकोच की जो बैसाखी तोड पाते ,
तो मेरे ख़्वाबों की दौड़ में ,
तुम भी दे पाते साथ मेरा ....
ज़िद्द का जो तुम्हारी
आँखों से पर्दा हटता ,
तो तुम समझ पाते
मै क्या सोचती हुँ ....
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